श्री भवानी गिरी जी महाराज के बारे में

श्री भवानी गिरी जी महाराज के बारे में

श्री भवानी गिरी जी महाराज का जीवन पूर्ण रूप से गौ माता की सेवा और विभीन दान धर्म के कार्य के लिए समर्पित है

संतोषी माता सेवा संघ के संस्थापक बाबा भवानी गिरी महाराज का जीवन परिचय प्राकृतिक रूप से अति सुंदर पर्वतीय राष्ट्र नेपाल के जुमला जिला फोई गांव में 1973 में एक गरीब परिवार में जन्म हुआ |  9 वर्ष में  पिता का देहांत  और 10 वर्ष में माता का निधन हो गया तत्पश्चात गरीबी भुखमरी में दर-दर की ठोकरें खाते हुए जहां-तहां भटकते हुए स्वाभाविक एक मंदिर की ओर कदम बढ़ गए जबकि ईश्वर से कोई आस्था या वास्ता नहीं था परंतु होनी ने स्वाभाविक अपनी ओर खींच लिया |

| उस मंदिर में एक सिद्ध महात्मा रहते थे जो कि  उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल के थे | उनका आश्रम गुजरात भारत में था | उन्होंने उस बालक पर दया दृष्टि करते हुए वहां से लेकर भारत में आ गए तब वह बालक मात्र चौथी क्लास पास किया हुआ था | उस बालक को गुजरात लाकर जिस प्रकार से चंदन को पत्थर में रगड़ा जाता है ठीक उसी प्रकार से  आश्रम  के संपूर्ण सेवा कार्य में लगा दिया गया | इस प्रकार से 2 साल का समय व्यतीत हुआ | उसी दौरान एक स्कूल में भर्ती करा दिया गया |

| तत्पश्चात 1 दिन महात्मा जी ने विशेष किसी मंत्र  की दीक्षा दी और बिना श्रद्धा भक्ति के ही उस मंत्र को वह बालक जपने लगा | तत्पश्चात धीरे-धीरे उस मंत्र के प्रभाव से असामान्य तरीके से जीवन में घटनाएं घटित होने लगी | चमत्कार देखने को मिलने लगा | इससे उस बालक के आस्था अध्यात्म के प्रति ईश्वर के प्रति प्रगाढ़ हो गई | आज उसी साधना के प्रभाव से उन गुरु महाराज  की कृपा प्रताप से आज मेरे पास किसी भी समस्या का समाधान स्वतही हृदय में उदित हो जाता है | बिना पढ़े ही ज्योतिषी का ज्ञान भी हो गया है |

| अब स्वाभाविक जीवन में  परमार्थ करने का  संकल्प उदय हुआ उससे पहले यह कहना आवश्यक  होगा 1989 मे प्रयागराज का कुंभ मेला हुआ | गुजरात से वहां जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | वहां जाकर एक से बढ़कर एक जपि तभी ज्ञानी ध्यानी साधु संतों का दर्शन हुआ लाखों साधु संत देखने को मिले उस संगत के प्रभाव से साधु बनने का रंग चढ़ गया| 1989 मैं साधु बन गया तत्पश्चात गुरुदेव ने संस्कृत पढ़ने के लिए हरिद्वार भेज दिया |

हरिद्वार आकर श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी मे रहने की व्यवस्था की गई | मुनि मंडल संस्कृत विद्यालय में प्रवेश  कराया गया उसके बाद नित्य गंगा स्नान पूजा-पाठ जब तक साधना के साथ-साथ पढ़ाई चलती रही 1991 उसके बाद देहरादून में लक्ष्मण संस्कृत विद्यालय में प्रवेश लिया और  जुलाई 1992 में  परीक्षा देने के बाद ग्रह स्थिति  बदलने के  कारण  शनि की साढ़ेसाती का  प्रभाव  पड़ा  मैं भ्रमित हो गया और मुंबई जा पहुंचा | 1992 से लेकर 1994 तक बड़ी दुर्दशा का सामना करना पड़ा यह सत मार्ग से भटकने का परिणाम था मन में यह विचार आया की नवरात्रि सामने है उसमें 9 दिन का व्रत किया जाए तो अवश्य कुछ ना कुछ उत्तम होगा मैं मुंबई से दूर नागनाथ पहुंच गया जहां एक सिद्ध बाबा की समाधि है और उनकी सिद्ध समाधि में 9 दिन की साधना करने का  सौभाग्य प्राप्त हुआ केवल एक सीताफल और नीम के पत्ते खाकर 9 दिन व्यतीत किये | आठवें दिन उस महात्मा का स्वप्न में दिव्य दर्शन हुआ नौवें दिन माता का वृद्ध महिला के रूप में दर्शन हुआ मैंने माता से अपनी समस्या  कही, माता ने कहा मुझे पीठ पर उठाकर ले चल उनको लाकर अनायास ही सेंट्रल स्कूल वीरपुर से पहले घोड़ों का अस्पताल है | वहां पर  उतारते ही माता  कन्या के रूप में हो गई और मुझसे कहा यहां से पश्चिम दिशा जा और आज जहां पर हमारा माता का स्थान बना हुआ है | वह जगह उस स्थान से पश्चिम की दिशा में है |

| लेकिन मैं उस समय बात समझ नहीं पाया वहां से पश्चिम गुजरात को चला गया | गुजरात जाकर पुनः अपने गुरु स्थान पर पहुंचा | वहां एक साधु के द्वारा एक और दिव्य महात्मा की दिव्य महिमा सुनने को मिली तो उस महात्मा की दर्शन की इच्छा हुई उस महात्मा के पास जाकर देखा तो वास्तव में वह दिव्य महात्मा थे | 135 साल के थे,  55 साल अन्न नहीं खाया था, एक ही नदी का जल पीते थे, केवल काली गाय का दूध पीते थे, उनके दर्शन के लिए हजारों भक्त आया करते थे | पर वह महात्मा मुझ पर अपनी कृपा  दृष्टि बनाकर हनुमान जी की महिमा सुनाया करते थे, हनुमान जी का चमत्कार सुनाया करते थे एक दिन उन्होंने मुझे हनुमान जी का विशेष मंत्र का उपदेश दिया | उस मंत्र को पढ़ते ही मुझे यह मालूम हो गया यह अद्भुत शक्तिशाली मंत्र है उसके बाद उनसे आशीर्वाद लेकर भटकता हुआ मुंबई पहुंच गया | एक हनुमान मंदिर, इंदिरा नगर, मलाड ईस्ट, में पहुंचा | वहां जाकर लगा कि यहीं मुझे साधना करनी चाहिए मैंने 90 दिन कि मौन साधना की, जिसमे सिर्फ 1 मुट्ठी चना 24 घंटे मे खाता था और 24 घंटे मंदिर के अन्दर ही रहेना होता था | उस साधना के प्रताप से हनुमान जी की विशेष कृपा  प्राप्त हुई  और मृत्यु संजीवनी मंत्र भी सिद्ध हुआ | तत्पश्चात मंत्र का परीक्षण किया गया तो एक सूखा हुआ पीपल का वृक्ष जिसमें मृत्यु संजीवनी मंत्र का जल डालने पर हरा भरा हो गया |

उसके बाद यह प्रयोग ना करने का आदेश आया, तब से अब तक ऐसा कोई कार्य मैंने  नहीं किया जो विधि के विधान के विरुद्ध है उसके बाद मुंबई छोड़कर उत्तर भारत में निवास करने का आदेश आया मैं वहां से जनवरी 1996 में चलकर देहरादून आ गया | आज भी उस मंत्र के 11 घंटे का महायज्ञ करने पर किसी भी समस्या का निवारण, कामना की सिद्धि, शत्रु दमन निश्चित तौर पर देखने को मिला है | ऐसा जरूर हुआ कहीं बार डॉक्टर के द्वारा असाध्य मरीज जिसके लिए यह कह दिया गया कि अब इन को बचाना संभव नहीं है ऐसे तीन चार मरीजों को संजीवनी के जरिए बचाया गया |

उसके बाद यह प्रयोग ना करने का आदेश आया, तब से अब तक ऐसा कोई कार्य मैंने  नहीं किया जो विधि के विधान के विरुद्ध है उसके बाद मुंबई छोड़कर उत्तर भारत में निवास करने का आदेश आया मैं वहां से जनवरी 1996 में चलकर देहरादून आ गया | आज भी उस मंत्र के 11 घंटे का महायज्ञ करने पर किसी भी समस्या का निवारण, कामना की सिद्धि, शत्रु दमन निश्चित तौर पर देखने को मिला है | ऐसा जरूर हुआ कहीं बार डॉक्टर के द्वारा असाध्य मरीज जिसके लिए यह कह दिया गया कि अब इन को बचाना संभव नहीं है ऐसे तीन चार मरीजों को संजीवनी के जरिए बचाया गया 1998 मे टपकेश्वर मंदिर के ठीक सामने संतोषी माता मंदिर की स्थापना की गई, जो कि पहले ही स्वप्न अवस्था में दृष्टांत दिया गया था कि यही तुम्हारे लिए निवास का मूल स्थान होगा |

पास में पैसे नहीं थे, मात्र ₹900 थे वह भी खर्च हो गए थे, उस स्थान में छोटी सी गुफा है | उस गुफा में रहने लगे जब तप करने लगे कुछ समय पश्चात नदी में बाढ़ आ गई | बाढ़ का पानी उस गुफा में घुस गया | जो भी थोड़ा बहुत बिस्तर आदि  ताम झाम था वह भी बहाकर ले गया | उसके बाद कोई चारा नहीं था | नीचे श्मशान घाट हुआ करता था | वहां से जो हरे बांस है , जिस पर मृत शरीर को बांधकर लाया जाता है | उन बांसों को लाकर झोपड़ा बनाया गया | अप्रैल 1997 से लेकर नवंबर 1997 तक भूखे प्यासे बहुत कठिन अवस्था में जीवन को गुजारना पड़ा | पूरी रात बैठकर भजन किया करते थे | प्रातः काल सोया करते थे | एक दिन सपने में संतोषी माता का दर्शन हुआ | उनसे वाद विवाद हुआ माता को अपनी   व्यथा सुनाई गई कि आपके होते हुए मेरा यह हाल हो गया है | माता मुस्कुराई और आशीर्वाद दिया आज के बाद किसी भी चीज की कोई कमी नहीं रहेगी | यह कहते हुए चली गई | तत्पश्चात अगले दिन ही एक भक्त जिसका नाम अरविंद कुमार था | टपकेश्वर महादेव के दर्शन करने प्रत्येक दिन आया करता था | वह व्यक्ति मुझसे मिला  मेरी व्यथा  सुनी | तत्काल ही मेरी समस्या का निराकरण करने लग गया | उसने माता का सुंदर सा छोटा सा मंदिर बनवाया | मेरे लिए खाने पीने रहने की बिस्तर की व्यवस्था की उसके बाद 30 जनवरी 1998 में संतोषी माता का स्थापना बड़े धूमधाम के साथ किया गया | जो कि आज संतोषी माता मंदिर टपकेश्वर गढ़ी कैंट देहरादून के नाम से प्रसिद्ध है | जिस मंदिर में तब से लेकर अब तक निरंतर दोनों समय हवन किया जाता है

 29 जनवरी की शाम 6:00 बजे माता के साक्षात दर्शन होते हैं | यह पल अद्भुत शक्ति का  अनुभूति कराने वाला होता है  जो भी भक्त इस दरबार में आते हैं, शुक्रवार का व्रत करते हैं उन सभी के मुखारविंद से एक ही बात सुनने को मिलती है | जब से हम माता को मानते हैं, व्रत करते हैं, यहां पर आते हैं, तब से हमारा सब प्रकार से मंगल हो रहा है 

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29 January

इससे पहले कि एक बात बताना चाहूंगा, वही जो सिद्ध बाबा जिन्होंने हनुमान जी की महिमा हमें बताई थी, साधना की थी | उन्होंने 11 मुखी, 7 मुखी, 5 मुखी और 1 मुखी हनुमान जी की महिमा बताई थी | तब हमारे संज्ञान में यह बात आई थी कि 7 मुखी और 11 मुखी हनुमान भी होते हैं | उसके लिए मैंने एक शास्त्र मंगाया, जिसका नाम था हनुमत रहस्य | उसमें  7 मुखी और 11 मुखी की महिमा का स्वरूप का वर्णन किया गया था | मैंने उसी समय संकल्प ले लिया कि यह हनुमान जी आपने ऐसा रूप धारण किया है तो इस समय भारत में कहीं  इनके दर्शन क्यों नहीं है | भविष्य में मैं अवश्य आपकी स्थापना कर आऊंगा | 2007 में ऐसा सौभाग्य प्राप्त हुआ कि हमने 7 मुखी हनुमान एवं 11 मुखी हनुमान जी का विशाल मंदिर प्रकृति की सुंदर वादियों में स्थापित किया  | 11 मुखी हनुमान मंदिर जामुनवाला देहरादून  के उत्तर भाग में नून नदी के किनारे सुशोभित है जोकि गढ़ी कैंट से मात्र 5 किलोमीटर में है और 7 मुखी हनुमान संतोषी माता मंदिर टपकेश्वर में ही विराजमान है जो मूर्ति विश्व में  एकमात्र ही है

यह बताना भी आवश्यक होगा कि मेरा  गि रस्त  जीवन कैसे प्रारंभ हुआ मुंबई से प्रस्थान के दौरान एक पंडित  जी से मुलाकात अचानक हुई मेरे किसी परिचित भक्तों के साथ आया हुआ था कहा  महाराज छोटी मुंह बड़ी बात कर रहा हूं आप यहां से प्रस्थान कर के कहां जाएंगे आपको मालूम नहीं है लेकिन मुझे ज्ञात हो रहा है कि आप एक प्रसिद्ध कंदरा के सामने एक नदी बह रही है उसके ठीक सामने एक भव्य धाम का निर्माण करेंगे और आप  ग्रस्त  आश्रम में  प्रवेश लेंगे बात को सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ मैंने उसके साथ बहस भी किया क्योंकि मैं बचपन से ब्रह्मचारी विवाह करने की चाह दूर दूर तक मन में नहीं था उसके बावजूद समय आने पर यह बात सिद्ध साबित हुई एक बालिका 1998 में संपर्क में आई उसे देखकर  स्वतही उसके प्रति  आकर्षण हुआ यह शायद मेरा प् प्रारब्ध था  मैं  स्वभाव  बस किसी भी बात को छुपा नहीं सकता इसलिए मैंने अपनी मन की व्यथा उस बालिका से कहा साथ ही यह भी कहा कि मेरे प्यार की कोई  मंजिल नहीं है यह जन्म मेरा आखिरी जन्म है दूसरा जन्म होना नहीं  इस जन्म में विवाह नहीं  होगा  बालिका  समझदार थी उन्होंने इस बात को सुनकर अपने अंदर ही दवा लिया इस बात को यदि वह व्यक किसी के आगे व्यक्त कर देती  तो शायद मेरे लिए बहुत बड़ी समस्या होती लेकिन  कुछ समय  समय   बाद 2007 में उन्होंने स्वयं ही यह प्रस्ताव रखा कि मुझे माता का दरबार और आपका साथ  नहीं मिला तो मैं  अपना  जीवन  समाप्त कर दूंगी इस बात को सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ मैंने इस बात को टालने की बहुत कोशिश की लगा कि अब  बचना मुश्किल है तब मैंने माता के आगे और हनुमान जी के आगे आदेश लिया दोनों शक्तियों का  मुझे  आदेश आया वह भी 7 बार तब मैंने ग्रस्त जीवन में प्रवेश कर लिया दुश्मनों ने इस बात का गलत बवंडर बनाने की कोशिश किया परंतु  साधना के प्रभाव से कोई भी मेरा कुछ बिगाड़ नहीं पाया वह बालिका आज मेरी पत्नी के रूप में है दुनियादारी से उनको कोई मतलब नहीं सुबह से लेकर शाम तक केवल माता की सेवा ही करना उनका  कार्य है